भारत का नाम सुनते ही सबसे पहले जिस ग्रुप का नाम दिमाग में आता है, वह है 'टाटा ग्रुप'। ईमानदारी, राष्ट्रवाद और व्यापार का पर्याय बन चुका यह साम्राज्य, जिसने सुई से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ बनाया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रतन टाटा जी की अनुपस्थिति में, इस 30 लाख करोड़ से ज़्यादा के ग्रूप पर संकट के बादल छा गए हैं? महज एक साल पहले रतन टाटा जी के जाने के बाद, बोर्ड में ऐसी खींचतान मची है कि सरकार को भी दखल देना पड़ा है! आखिर ऐसा क्या हो गया टाटा ग्रुप में? यह आर्टिकल आपके सभी सवालों का जवाब देगा – सरल भाषा में, पूरी जानकारी के साथ।
टाटा ग्रुप का असली मालिक कौन?
समझें Tata Sons और Tata Trust का खेल
किसी भी विवाद को समझने से पहले, टाटा ग्रुप की जड़ें समझना ज़रूरी है। इस बड़े साम्राज्य की संरचना दो मुख्य संस्थाओं पर टिकी है: Tata Sons (टाटा संस) और Tata Trust (टाटा ट्रस्ट)।
• Tata Sons (टाटा संस): 'द मदरशिप'
• जब भी 'टाटा ग्रुप' की बात होती है कि उसका मार्केट कैप 30 लाख करोड़ पार कर गया है, या वह पाकिस्तान की GDP से भी बड़ा है, तो यह बात Tata Sons की होती है।
• यह वह मूल कंपनी है जो 400 से ज़्यादा कंपनियों (जैसे TCS, Tata Motors, Tata Steel, Titan, Tata Consumer, Air India) की मालिक है।
• इनमें से 29 कंपनियां लिस्टेड हैं और Tata Capital 30वीं बनने जा रही है।
• Tata Sons का मुख्य काम: यह सभी ग्रुप कंपनियों से मुनाफा इकट्ठा करती है, नुकसान में चल रही कंपनियों को सहारा देती है, नए बिजनेस में निवेश करती है, और सबसे महत्वपूर्ण – ग्रुप के लिए बड़े स्ट्रेटेजिक डिसीजन लेती है (जैसे नए सेक्टर में एंट्री करना, बड़े निवेश करना)।
• यह खुद एक प्राइवेट कंपनी है, स्टॉक मार्केट में लिस्टेड नहीं है।
• Tata Trust (टाटा ट्रस्ट): 'असली मालिक और मिशन का रक्षक'
• यहीं पर कहानी दिलचस्प हो जाती है। Tata Sons का भी मालिक Tata Trust है, जिसके पास Tata Sons के 66% शेयर हैं।
• टाटा ग्रुप की स्थापना का मूल उद्देश्य ही चैरिटी और समाज सेवा था। इसलिए, इन्होंने तय किया कि ग्रुप का मालिक एक ट्रस्ट होगा ताकि मुनाफा सीधे समाज सेवा में लगाया जा सके।
• फिलहाल, Tata Trust के चेयरमैन नोएल टाटा हैं।
बोर्ड मेंबर्स में खींचतान: टाटा ट्रस्ट में चल रहा है मुख्य विवाद!
यह सबसे बड़ा और मुख्य विवाद है जो आजकल सुर्खियों में है। रतन टाटा जी के समय तक, उनका कद इतना बड़ा था कि उनके हर वचन को सर्वोपरि माना जाता था। उनके रहते कोई विवाद नहीं था, क्योंकि वे Tata Sons और Tata Trust दोनों के चेयरमैन थे। लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
• विवाद की जड़: Tata Trust में नोएल टाटा जी के नेतृत्व पर कुछ ट्रस्टियों को आपत्ति है। ट्रस्ट में कुल 7 ट्रस्टी थे।
• 75 साल का नियम: रतन टाटा जी के बाद ट्रस्ट में एक नया नियम आया कि 75 साल से अधिक उम्र वाले ट्रस्टी का हर साल वोटिंग से अपॉइंटमेंट होगा।
• पहला टकराव: विजय सिंह (पूर्व डिफेंस सेक्रेटरी) की उम्र 77 साल होने पर, उनके री-अपॉइंटमेंट को लेकर वोटिंग हुई। 2 फेवर में और 4 अगेंस्ट में वोट पड़े, जिससे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
• महाली मिस्त्री का प्रस्ताव: इसके बाद, महाली मिस्त्री (रतन टाटा जी के करीबी और सायरस मिस्त्री के कजिन) और उनके तीन साथी ट्रस्टियों ने Tata Sons के बोर्ड में महाली मिस्त्री को नॉमिनेट करने का प्रस्ताव रखा, जिसे नोएल टाटा और उनके समर्थक (वेणु श्रीनिवासन) ने खारिज कर दिया।
• खेमेबाजी: अब ट्रस्ट में दो खेमे बन गए हैं – एक नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन का, और दूसरा महाली मिस्त्री और उनके चार साथी ट्रस्टियों का।
• सरकार का दखल: इस खींचतान से चिंतित होकर, 7 अक्टूबर को Tata Trust के ट्रस्टी दिल्ली में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और गृह मंत्री अमित शाह से मिले। सरकार इस विवाद को जल्द से जल्द सुलझाना चाहती है, क्योंकि इसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
इसका असर क्या होगा?
• रणनीतिक निर्णय बाधित: Tata Sons अब नए सेक्टर में एंट्री करने या बड़े निवेश करने जैसे महत्वपूर्ण रणनीतिक निर्णय नहीं ले पाएगी, क्योंकि ट्रस्ट में डेडलॉक बना रहेगा।
• नेतृत्व में अनिश्चितता: चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन (जिनके नेतृत्व में पिछले 5 सालों में ग्रुप का राजस्व दोगुना, लाभ तिगुना और मार्केट कैप तिगुना हुआ है) को भी निर्णय लेने में मुश्किल होगी।
• एफिशिएंसी में कमी: यह खेमेबाजी पूरे टाटा ग्रुप की कंपनियों में फैल सकती है, जिससे एफिशिएंसी और प्रोडक्टिविटी प्रभावित हो सकती है।
दूसरा विवाद: शापूरजी पालोनजी ग्रुप और 18% शेयर का पेच!
Tata Sons में 66% हिस्सेदारी Tata Trust की है, और 18% हिस्सेदारी मिस्त्री परिवार (शापूरजी पालोनजी ग्रुप) की है, जो दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
• विवाद: शापूरजी पालोनजी ग्रुप अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए इन 18% शेयरों को बेचना या गिरवी रखना चाहता है, लेकिन Tata Trust उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा।
• कारण: टाटा ट्रस्ट के शुरुआती एग्रीमेंट में यह स्पष्ट था कि ग्रुप का मकसद प्रॉफिट फर्स्ट नहीं, बल्कि नेशन फर्स्ट और समाज सेवा है। इसलिए, ट्रस्ट नहीं चाहता कि कोई बाहरी व्यक्ति (जो प्रॉफिट माइंडसेट का हो) ग्रुप में प्रवेश करे और इस मिशन को बाधित करे।
• निराशा: शापूरजी पालोनजी ग्रुप का कहना है कि उनके पास 5 लाख करोड़ की संपत्ति होकर भी वे उसे इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
• रतन टाटा का समाधान (अधूरा): रतन टाटा के समय यह प्रस्ताव आया था कि Tata Sons खुद शापूरजी पालोनजी ग्रुप के शेयर खरीद लेगी, लेकिन उनके जाने के बाद यह बात ठंडे बस्ते में चली गई। अब यह विवाद फिर से गहरा रहा है।
तीसरा विवाद: RBI और Tata Sons IPO का दबाव
यह विवाद सरकार और आरबीआई से जुड़ा है, जिसकी बाजार में बहुत ज़्यादा चर्चा नहीं हुई है, लेकिन यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।
• RBI की मांग: Tata Sons का लेनदेन इतना बड़ा है कि RBI ने 2022 में इसे अपर लेयर NBFC (नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी) घोषित किया और अगले 3 साल के भीतर IPO (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) लाने का निर्देश दिया।
• Tata Sons का रुख: Tata Sons हमेशा से एक प्राइवेट कंपनी रही है और पब्लिक लिस्टिंग नहीं चाहती। उनका तर्क है कि वे प्रॉफिट के लिए काम नहीं करते, बल्कि चैरिटी के लिए। पब्लिक लिस्टिंग से उन्हें तिमाही लाभ और कम्प्लायंस का दबाव झेलना पड़ेगा, जो उनके मिशन से भटकने जैसा होगा।
• लोन चुकाना: इस दबाव से बचने के लिए Tata Sons ने 20,000 करोड़ का अपना पूरा कर्ज चुका दिया और कहा कि अब वे NBFC नहीं हैं, इसलिए IPO की ज़रूरत नहीं।
• RBI की चुप्पी: 25 सितंबर की डेडलाइन निकल चुकी है, लेकिन RBI ने अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है कि क्या Tata Sons को IPO से छूट मिलेगी या उन्हें लिस्टिंग के लिए मजबूर किया जाएगा। यह चुप्पी एक बड़े सवाल का निशान लगाती है।
क्या रतन टाटा के बाद कोई नहीं जो टाटा को संभाले?
ये सारे विवाद यह सवाल खड़ा करते हैं कि क्या रतन टाटा जी के विशाल व्यक्तित्व और नेतृत्व के बाद टाटा ग्रुप में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं बचा जो इस समूह को एकजुट रख सके? रतन टाटा जी और जेआरडी टाटा जी के रहते, इन 74 सालों में कोई भी 'चूं' भी नहीं करता था। उनका कद, उनका सम्मान इतना बड़ा था कि उनका वचन ही शासन था। उनके जाते ही, एक साल में ही यह स्थिति बन गई है।
वर्तमान चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है, लेकिन ट्रस्ट के भीतर की ये खींचतान उनके काम में बाधा डाल रही है।
इन विवादों का स्टॉक मार्केट और आपके पोर्टफोलियो पर असर
टाटा ग्रुप भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा है।
• बाजार में अस्थिरता: अगर ये विवाद सुलझते नहीं हैं और ग्रुप में अंदरूनी कलह बढ़ती है, तो टाटा ग्रुप की लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में अनिश्चितता और अस्थिरता आ सकती है।
• निवेशकों की चिंता: नए सेक्टर में एंट्री करने या बड़े निर्णय लेने में देरी से निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है।
• देश की इमेज: टाटा ग्रुप की स्थिरता भारत की वैश्विक इमेज के लिए भी महत्वपूर्ण है।
(Conclusion - निष्कर्ष: उम्मीद और भविष्य की दिशा)
यह सही है कि टाटा ग्रुप इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। लेकिन, रतन टाटा जी ने जिस मजबूत नींव पर इस साम्राज्य को खड़ा किया है, वह आसानी से हिलने वाली नहीं है। हम सभी भारतीयों की तरफ से यही उम्मीद है कि ये विवाद जल्द से जल्द सुलझें, ताकि टाटा ग्रुप बिना किसी आंतरिक बाधा के आगे बढ़ सके और देश के विकास में अपना योगदान देता रहे।
भविष्य में इन विवादों पर क्या अपडेट आती है, इस पर हम अपनी नज़र बनाए रखेंगे।
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